NATURES COMMON SCIENCE LLP

                Non physical Science

               अभौतिक विज्ञान

मानव के लिये सृष्टि की उत्पत्ति आज भी एक रहस्य है। सृष्टि के पहले क्या था ? इसकी रचना किसने, कब और क्यों की ? ऐसा क्या हुआ जिससे इस सृष्टि का निर्माण हुआ?  अनेकों अनसुलझे प्रश्न है जिनका एक निश्चित उत्तर किसी के पास नहीं है। कुछ सिद्धांत है जो कुछ प्रश्नों का उत्तर देते है और कुछ नये प्रश्न खड़े करते है। सभी प्रश्नों के उत्तर देने वाला सिद्धांत अभी तक सामने नहीं आया है।  सबसे ज्यादा मान्यता प्राप्त सिद्धांत है महाविस्फोट सिद्धांत (The Bing Bang Theory)  लेकिन एक सफल प्रयोग ने यह सिद्ध किया कि महाविस्फोट सिद्धांत भी मानव की एक कल्पना है। क्योकि इन सभी प्रश्नों के उत्तर देने वाला वास्तविक सिद्धांत अब सामने आया है।  वह निर्माता ऊर्जा (Creator Energy)  का सिद्धांत है ।

 ब्रह्मांड की उत्पत्ति का वास्तविक कारण एक चेतनावान अभौतिक ऊर्जा (Conscious Non physical energy)है। जिसे निर्माता ऊर्जा (Creator Energy)  नाम दिया गया। इस निर्माता उर्जा की क्रमबद्ध प्रणाली और व्यवस्थित ज्ञान (Systematic order and systematic knowledge)  द्वारा अभौतिक रचनाओं की निर्माण  प्रक्रिया के विज्ञान को अभौतिक विज्ञान नाम दिया गया ।  और अभौतिक रचनाओं द्वारा भौतिक रचनाओं के निर्माण की तकनीक को हम भौतिक विज्ञान के नाम से जानते हैं।

लगभग 1200 वर्ष पहले खोजा गया अभौतिक विज्ञान वर्ष 2011 में एक आश्चर्यजनक घटना द्वारा प्रमाणित हुआ । विश्वाश करना कठीन था परंतु 22 वर्ष के युवा इंजीनियरिंग छात्र ने प्रयोग द्वारा सिद्ध करने का संकल्प लिया गया और मात्र 7 वर्ष में रहस्मय पहेली को सुलझा लिया गया   ( विस्तार परिचय  ….    

 निर्माता ऊर्जा      >>>   अभौतिक रचना    >>>   भौतिक रचना . 

  (Creator Energy)                .(Non Physical Structure)         .(Physical structure)

(निर्माता ऊर्जा  सिद्धांत)       .(अभौतिक विज्ञान)           .(भौतिक विज्ञान ) 

.प्रयोग 1   (Experiment – 1)

कुछ दिनो के बादइस संपूर्ण प्रकृति और इंसान प्रजाति के इतिहास का सबसे बड़ा प्रयोग शुरु होने जा रहा है। इस प्रयोग का उद्देश्य प्रकृति की बेहतर संतुलन व्यवस्था बनाकर इंसान के अस्तिव को पृथ्वी पर बनाये रखना है। इस प्रयोग के सफल परीक्षण के बाद सब कुछ सामान्य एवं व्यवस्थित हो जाएगा। जिस का लाभ आने वाले कई सौ वर्षों तक प्रकृति और उसमें उपस्थित सभी प्राणियो को मिलेगा। इस प्रयोग का सबसे अधिक लाभ वर्तमान के सभी इंसान प्राप्त करेंगे , हमारे बाद हमारे बच्चो को इसका लाभ मिलेगा ,और भविष्य मे दोबारा हम सभी को फिर से इसका लाभ प्राप्त होगा 

यह प्रयोग Nature’s Common Science की थ्योरी प्रकृति की व्यवस्थित उर्जा (Systematic energy of nature)  को वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित करने के लिए संपूर्ण विश्व में एक साथ किया जायेगा। NCS की टीम में कम से कम 5 अरब लोगो या विश्व के सभी धर्मों और सभ्यताओं के प्रतिएक मानव की आवश्यकता होंगी। जिनके द्वारा अपने अपने स्तर पर स्वेच्छा से सहयोग दिया जाएगा। इस प्रयोग में सहयोग करने के लिए आपको कोई विशेष कार्य नहीं करना होगा , प्रयोग-1 में सहयोग के लिए आपको कुछ समय के लिए इंसान की तरह व्यवहार करना होगाइंसानी बुद्धि का प्रयोग करना होगासही और गलत में अंतर समझना होगा । आप सहयोग केवल अपने अपने बेहतर भविष्य के लिए करेंगेइसे कब और कैसे करना चाहिए यह निर्धारित करने के लिए भी आप स्वतंत्र होंगे। इस प्रयोग के दौरान आपको केवल 0.001% कार्य करना होगा जिसका 100% लाभ मिलेगा। वह कार्य केवल इतना है कि-

सम्पुर्ण मानव सभ्यता को NCS की सभी थ्योरीयो को उदाहरण द्वारा समझना व दूसरे लोगो को समझना होगा । NCS द्वारा खोजे गये प्रकृतिक कानूनो का पालन करना होगाऔर प्रकृति की व्यवस्थित उर्जा (Systematic energy of nature) की कार्यप्रणाली को समझना होगा । यह ऊर्जा पृथ्वी पर उपस्थित पर्यावरण को व्यवस्थित एवं स्वछ बनाने का कार्य लगातार कर रही है। हमें व्यवस्था बनाने में इस ऊर्जा की सहायता करनी होगी । हमें अपने वर्तमान कानूनो में प्रकृति कानूनो के आधार पर संशोधन करना होगा। ये सभी जानकारी Nature’s common Science द्वारा थ्योरी के माध्यम से प्राप्त होंगी। कुछ शुरुआती थ्योरीयों को पढ़ने के बाद यह प्रयोग शुरू हो जाएगा। यदि वर्तमान में हम इंसानों में थोड़ी भी समझ या इंसानियत बची है तो यह प्रयोग 100% सफल होगा । यह प्रयोग इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएगाभविष्य में आने वाली मानव पीढ़ियों के लिए यह प्रयोग प्रेरणा का स्रोत बनेगा।

हजारों वर्षों तक गाथाएं सुनाई जाएंगी किकैसे विलुप्त होने की कगार पर खड़े वर्तमान मानव ने उचित समय पर एकता और बुद्धिमानी का उदाहरण देते हुए अपने ग्रह पृथ्वी और भविष्य मानव के अस्तित्व को सुरक्षित बचा लिया था ।